हाल ही में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की अध्यक्षता में हुई वस्तु एवं सेवा कर (GST) परिषद की 56वीं बैठक भारत की अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था में बदलाव के लिहाज़ से मील का पत्थर साबित हो रही है “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दूरदृष्टि व दृढ़ प्रतिबद्धता से नेक्स्ट जेनरेशन जीएसटी रिफॉर्म भारत की ग्रोथ को निश्चित रूप से मजबूत करेंगे, निश्चित तौर पर ये सुधार कारोबार को आसान, निवेश को आकर्षक और हर राज्य को विकास की दौड़ में बराबरी का सहभागी बनाएंगे।”
जीएसटी में जो ताज़ा बदलाव किया गया है, उसमें मुख्य रूप से 12 प्रतिशत और 28 प्रतिशत वाले जीएसटी स्लैब को हटाना शामिल है. इससे जीएसटी की एक ऐसी कर प्रणाली बन गई है, जिसमें टैक्स कम हो गया है, यानी अब मुख्य तौर पर 5 और 18 प्रतिशत के जीएसटी स्लैब ही बचे हैं. इस बदलाव से रोज़मर्रा के जीवन में काम आने वाली ज़रूरी वस्तुओं जैसे कि अति-उच्च तापमान (UHT) वाले दूध और पनीर से लेकर तमाम दूसरे घरेलू उपयोग के सामानों पर लगने वाले टैक्स में अभूतपूर्व कमी की गई है. कई चीज़ें तो ऐसी हैं जिन पर पहले 12 प्रतिशत या 18 प्रतिशत जीएसटी वसूला जाता था, लेकिन अब उन्हें 5 प्रतिशत वाले स्लैब में ला दिया गया है, जबकि कई वस्तुओं पर तो जीएसटी समाप्त ही कर दिया गया है. सबसे ख़ास बात यह है कि कैंसर और कई दूसरी घातक बीमारियों के साथ ही पुरानी और लंबे समय तक चलने वाली बीमारियों के इलाज में इस्तेमाल होने वाली 33 जीवन रक्षक दवाओं को 5 प्रतिशत जीएसटी स्लैब से बाहर निकालकर, उन पर टैक्स शून्य कर दिया गया है.
केंद्र सरकार की ओर से जीएसटी दरों में किया गया यह बदलाव कोई मामूली बात नहीं है. दवाइयां ऐसी ज़रूरी चीज़ होती हैं, जिन्हें कोई चाहकर भी ख़रीदना बंद नहीं कर सकता है. यानी दवाएं चाहे कितनी महंगी मिलें, मरीज़ उसे ख़रीदते हैं और यह उनकी मज़बूरी होती है. ज़ाहिर है कि जिन परिवारों में बुजुर्ग सदस्य हैं और लंबे समय से बीमारियों से जूझ रहे हैं, उन्हें हर हाल में दवाएं लेनी होती हैं. पहले जो जीएसटी दरें थीं, उससे उन्हें महंगी दवाएं लेनी पड़ती थीं और इससे उनका ख़र्च बढ़ गया था. इन दवाओं पर लगने वाले जीएसटी कम करने से न सिर्फ़ ऐसे परिवारों की जेब पर पड़ने वाला बोझ कम होगा, बल्कि उन्हें मानसिक तौर पर भी बहुत राहत पहुंचेगी ।
कई चीज़ें तो ऐसी हैं जिन पर पहले 12 प्रतिशत या 18 प्रतिशत जीएसटी वसूला जाता था, लेकिन अब उन्हें 5 प्रतिशत वाले स्लैब में ला दिया गया है, जबकि कई वस्तुओं पर तो जीएसटी समाप्त ही कर दिया गया है.
इस बदलाव के दौरान सरकार ने एक और सराहनीय क़दम उठाया है, यानी व्यक्तिगत स्वास्थ्य एवं जीवन बीमा प्रीमियम पर लगने वाले जीएसटी को पूरी तरह से समाप्त कर दिया है. ज़ाहिर है कि पहले ऐसे सभी बीमा पर 18 प्रतिशत कर वसूला जाता था. निसंदेह तौर पर इस छूट से देश में बीमा कराना सस्ता होगा और लोगों की पहुंच में होगा. देश में अभी भी बहुत बड़ी आबादी की सामाजिक सुरक्षा के इस उपाय, यानी हेल्थ और लाइफ इंश्योरेंस तक पहुंच नहीं है और इससे इनका दायरा बढ़ेगा, साथ ही आम लोग अपना बीमा कराने के लिए प्रोत्साहित होंगे. जीएसटी काउंसिल ने बीमा प्रीमियम पर लगने वाले कर को समाप्त करके कहीं न कहीं लोगों को बड़ी आर्थिक राहत प्रदान की है. ज़ाहिर है कि लंबे वक़्त से भारत की विकास यात्रा में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले मध्यमवर्गीय परिवारों की मांगों और ज़रूरतों को निश्चित रूप से अब उन्हें इससे राहत मिलेगी.
इसके अलावा, सरकार ने हानिकारक और विलासिता की वस्तुओं पर जीएसटी बढ़ाकर 40 प्रतिशत कर दिया है. सरकार का यह क़दम न केवल न्यायसंगत है, बल्कि आर्थिक रूप से उचित भी है. विलासिता की वस्तुओं पर ज़्यादा जीएसटी लगाकर अपने राजस्व में बढ़ोतरी करने का सरकार का फैसला किसी भी लिहाज़ से अनुचित नहीं है. इस निर्णय से मध्यमवर्ग और निम्न मध्यमवर्ग के लोगों की क्रय शक्ति में इज़ाफा होगा है. ज़ाहिर है कि यह वो वर्ग है जो भारत के विकास की धुरी है और इसके सशक्तिकरण से ही भारत को आर्थिक तरक्की के मार्ग पर और तेज़ी से आगे बढ़ा सकता है ।
इसके अलावा, वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता के वर्तमान महौल में अगर भारत अपनी विकास की गति को बरक़रार रखना चाहता है, तो उसके लिए यह बढ़ता हुआ पूंजीगत व्यय और मज़बूत खपत का तालमेल बेहद अहम साबित होगा. जीएसटी काउंसिल की 56वीं बैठक में कर दक्षता और कर समता के बीच बेहतर संतुलन स्थापित करने का काम किया गया है. यानी एक तरफ जटिल कराधान से पैदा होने वाली आर्थिक दिक़्क़तों और लागत को कम किया गया है, वहीं दूसरी ओर आम लोगों को अधिक टैक्स के बोझ से निजात दिलाई गई है. कुल मिलाकर, जीएसटी काउंसिल ने कर सुधार के इस महत्वपूर्ण क़दम से भारत की आर्थिक यात्रा के अगले चरण की दिशा तय कर दी है ।
GST 2.0 केवल एक कर सुधार नहीं है — यह भारत की वित्तीय संरचना का रणनीतिक पुनर्गठन है।
यह दरों को सरल बनाकर, नागरिकों को सशक्त बनाकर और प्रमुख क्षेत्रों को बढ़ावा देकर एक अधिक समावेशी एवं लचीली अर्थव्यवस्था की नींव रखता है ।

( लेखक भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता एवं भाजपा उत्तर प्रदेश के प्रदेश उपाध्यक्ष हैं )