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नई दिल्ली3 घंटे पहले
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सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र सरकार और कई वित्तीय नियामकों से उस याचिका पर जवाब मांगा, जिसमें मांग की गई है कि एक सेंट्रालाइज्ड डिजिटल प्लेटफॉर्म बनाया जाए। इस प्लेटफॉर्म पर लोग अपने सभी वित्तीय एसेट्स – चाहे वे एक्टिव हों, इनएक्टिव हों या अनक्लेम्ड हों, इन सभी को एक साथ देख सकें।
ये सभी एसेट्स रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI), सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (SEBI) और इंश्योरेंस रेगुलेटरी एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी ऑफ इंडिया (IRDAI) जैसे नियामकों के तहत आने वाले इंस्टीट्यूशंस में हो सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और वित्तीय नियामकों को चार हफ्तों में जवाब देने को कहा है। मामले की अगली सुनवाई जवाब दाखिल होने के बाद होगी।
सरकार से लेकर PFRDA तक को नोटिस जारी
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने केंद्र सरकार, उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय, RBI, SEBI, IRDAI, नेशनल सेविंग्स इंस्टीट्यूट, एम्पलॉई प्रोविडेंट फंड (EPFO) और पेंशन फंड रेगुलेटरी एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी (PFRDA) को नोटिस जारी किया। ये याचिका सामाजिक कार्यकर्ता आकाश गोयल ने दायर की है।
उन्होंने मांग की है कि एक ऐसा सिस्टम बनाया जाए, जिससे लोग अपने बिखरे हुए या इनएक्टिव फाइनेंशियल एसेट्स को आसानी से खोज सकें और उनका दावा कर सकें। याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील मुक्ता गुप्ता ने कोर्ट को बताया कि दिल्ली हाई कोर्ट ने इस साल की शुरुआत में इस समस्या को गंभीर माना था, लेकिन तब से सरकार या नियामकों ने इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया।
मुक्ता गुप्ता ने कहा, ‘दिल्ली हाई कोर्ट ने माना था कि यह समस्या लाखों लोगों को प्रभावित करती है, लेकिन इस पर पॉलिसी बनाने के लिए सरकार पर छोड़ दिया गया। इसके बावजूद लाखों आम नागरिकों के पैसे बैंकों, इंश्योरेंस कंपनियों, म्यूचुअल फंड्स और पेंशन स्कीम्स में फंसे हुए हैं।’
क्या है समस्या?
इस साल जनवरी में दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा था कि इनएक्टिव और अनक्लेम्ड एसेट्स की समस्या लाखों निवेशकों और जमाकर्ताओं के लिए गंभीर चिंता का विषय है। लेकिन कोर्ट ने इस मामले में सीधे हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया और इसे सरकार और पॉलिसी मेकर्स के लिए छोड़ दिया।
याचिका में कुछ चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं। देश भर में 9.22 करोड़ से ज्यादा इनएक्टिव बैंक अकाउंट्स हैं, जिनमें एवरेज 3,918 रुपए प्रति खाते के हिसाब से पैसे पड़े हैं। इसके अलावा बैंकों, म्यूचुअल फंड्स, इंश्योरेंस कंपनियों, प्रोविडेंट फंड और स्माल सेविंग स्किम्स में 3.5 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का अनक्लेम्ड अमाउंट है।
याचिका में बताया गया कि इनमें से कई फंड उन लोगों के हैं, जो अब इस दुनिया में नहीं हैं। उनके कानूनी वारिसों को इन एसेट्स की जानकारी नहीं है, क्योंकि या तो नॉमिनी की डिटेल्स मौजूद नहीं हैं या फिर इन्हें खोजने का कोई आसान तरीका नहीं है। नतीजा यह है कि यह फंसा हुआ धन न तो मालिकों के काम आ रहा है और न ही अर्थव्यवस्था में योगदान दे रहा है।
क्या हैं मौजूदा व्यवस्थाएं?
याचिका में तीन बड़े स्टेट्यूटरी फंड्स का जिक्र किया गया है, जो अनक्लेम्ड पैसों को संभालते हैं…
- डिपॉजिटर एजुकेशन एंड अवेयरनेस फंड (DEAF): RBI के तहत, DEAF बैंकों में अनक्लेम्ड डिपॉजिट्स को संभालता है।
- इनवेस्टर एजुकेशन एंड प्रोटेक्शन फंड (IEPF): कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय के तहत, IEPF अनक्लेम्ड डिविडेंड और शेयरों को इकट्ठा करता है।
- सीनियर सिटिजन्स वेलफेयर फंड (SCWF): फाइनेंस एक्ट 2015 के तहत, SCWF अनक्लेम्ड इंश्योरेंस और स्माल सेविंग स्किम्स के पैसों को संभालता है।
DEAF और IEPF में कुल मिलाकर 1.6 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा की अनक्लेम्ड राशि पड़ी है। याचिका में कहा गया है कि यह राशि भारत के स्वास्थ्य बजट से लगभग तीन गुना और शिक्षा बजट से दोगुनी है। फिर भी यह पैसा बेकार पड़ा है।
क्या है मांग?
याचिका में कहा गया है कि एक यूनिफाइड रजिस्ट्री की कमी से नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों (अनुच्छेद 14 और 21) का उल्लंघन हो रहा है। क्योंकि इससे पारदर्शिता और अपनी संपत्ति तक समय पर पहुंचने का अधिकार प्रभावित हो रहा है।
याचिका में मांग की गई है कि एक सुरक्षित, आधार-लिंक्ड, ई-केवाईसी आधारित पोर्टल बनाया जाए, जहां लोग अपने और अपने नॉमिनी के सभी फाइनेंशियल एसेट्स देख सकें। सभी फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन को हर एसेट के लिए नॉमिनी डिटेल्स दर्ज करना अनिवार्य किया जाए। दावेदारों के लिए समय पर शिकायत को हल करने वाला सिस्टम बनाया जाए।
आगे क्या होगा?
सुप्रीम कोर्ट के इस नोटिस से उम्मीद है कि जल्द ही सरकार और नियामक इस दिशा में कोई ठोस कदम उठाएंगे। अगर ऐसा हुआ, तो लाखों लोगों को अपने खोए हुए या भूले हुए पैसों तक पहुंचने में आसानी होगी और यह पैसा अर्थव्यवस्था में भी वापस आ सकेगा।